आज के मेरे इस पोस्टमें मैं आप सबको अष्टविनायक के चौथे रुप वरद विनायक गणेशके बारेमे जानकारी दूंगा
वरद विनायक गणेश
यह
मंदिर मुंबई-पुणे हाइवे पर पुणे शहरसे ८० किलोमीटर दूर आये हुए खोपोलीके पास महाद
मे स्थित हैं. इस जगहसे सबसे नजदीकी कर्जत रेल्वे स्टेशन हैं जो २४ किलोमीटरकी
दुरी पर आया हुआ हैं.
हर
मंदिरकी तरह इस मंदिरके पीछेभी एक कहानी छुपी हुई हैं. कहा जाता हैं की १६९० मै
वरद विनायक गणेशजी की मूर्ति धोंडू पौदकरजी को तालाबमे से मिलि थि तब इस मुर्तिको
तालाबके पास आये हुए ग्रामदेवी मंदिरमे रखा गया था. फिर १७२५ मैं कल्याण सुन्दर
श्री रामजी महादेव बिवाल्करने वरद विनायाक्के मंदिरको बनवाया था जो एक छपरेसे बने
हुए घर जेसा दीखता था पर अभी फिरसे मंदिरको नया बनाया गया हैं. यह मंदिर पूर्वमुखी
हैं और पश्चिमकी और भगवानका तालाब आया हुआ हैं.
यहाँ
स्थापित गणेश मूर्ति पूर्वमुखी हैं गणेशजी की सुंढ बाई और हैं. इस मंदिरमें एक
अखंड दीपज्योत जल रही हैं जो कहा जाता हैं की १८९२से जल रही हैं. यहाँ ४ हाथीकी
प्रतिमा मंदिरकी चार दिशाओमे स्थापित हैं. मंदिरका सभाक्क्ष ८ फीट - ८ फीटका हैं.
मंदिर का गुमंट २५ फिट ऊँचा हैं और गुमंटके कलश उपर सोनेका ढोल चढ़ा हुआ हैं.
अष्टविनायक के सभी मंदिरमेंसे सिर्फ यही एक एसा मंदिर हैं के जहा पर हर कोई
गणेशजीकी प्रतिमको अपने हाथोसे छूकर पूजा कर शकता हैं.
यहाँ
महाद मैं गणेशजीके आलावा और मंदिरभी हैं जिसमे शिवजीका मंदिर, विष्णुजी, गणेशजी
दत्त मंदिर और सूर्यपुत्र शानिदेवके मंदिरका समावेश होता हैं.
वरद विनायक गणेश मंदिर और प्रतिमाकी तस्वीरें
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